kalonji farming

कलौंजी की खेती कैसे करे?

कलौंजी की खेती व्यवसायी फसल के तौर पर की जाती है. इसके बीज बहुत ज्यादा लाभकारी होते हैं. विभिन्न जगहों पर इसे कई नामों से जाना जाता है. इसका बीज (kalonji seeds) अत्यंत छोटा होता है. जिसका रंग काला दिखाई देता है. इसके बीज का स्वाद हल्की कड़वाहट लिए तीखा होता है. जिसका इस्तेमाल नान, ब्रैड, केक और आचारों को खुशबूदार बनाने और खट्टापन बढ़ाने के लिए किया जाता है.कलौंजी का पौधा शुष्क और आद्र जलवायु के लिए उपयुक्त होता है. इसके पौधे को विकास करने के लिए ठंड की ज्यादा जरूरत होती है. जबकि पौधे के पकने के दौरान उसे अधिक तापमान की जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त होती है.इसके बीज में इसमें 35 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 21 प्रतिशत प्रोटीन और 35 से 38 प्रतिशत वसा पाई जाती है. खाने के अलावा कलौंजी का इस्तेमाल चिकित्सा के रूप में भी होता है. इसके बीजों से निकलने वाले तेल से हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह, कमर दर्द और पथरी जैसे रोगों में फायदा देखने को मिलता है. इसके अलावा इसके तेल का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन की चीजों को बनाने में भी किया जाता है.

अगर आप भी इसकी खेती करने का सोच रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

जलवायु और तापमान (climate and temperature)

इसकी खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए सर्दी और गर्मी दोनों की जरूरत होती है. इसके पौधे को विकास करने के लिए ठंड की जरूरत होती है. और पकने के दौरान तेज़ गर्मी की जरूरत होती है. इस कारण भारत में इसकी खेती ज्यादातर रबी की फसल के साथ की जाती है. इसके पौधों को ज्यादा बारिश की जरूरत नही होती.

उपयुक्त मिट्टी (suitable soil)

कलौंजी की खेती के लिए भूमि में जल निकासी अच्छे से होनी चाहिए। कलौंजी की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थ से युक्त बलुई दोमट सबसे उपयुक्त होती है. इसकी खेती पथरीली भूमि में नही की जा सकती. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए.

कलौंजी की कई उन्नत किस्में हैं जिन्हें उनकी पैदावार के आधार पर तैयार किया गया है.

कलौंजी की उन्नत किस्में( Improved varieties of Kalonj)

एन. आर. सी. एस. एस. ए. एन. – 1 (N. R. C. S. s. a. N. – 1)

कलौंजी की ये एक उन्नत किस्म है. इस किस्म के पौधे की लम्बाई दो फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 135 से 140 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

पंत कृष्णा 

इस किस्म के पौधे से ऊंचाई 2-2.50 फीट तक पाई जाती है

इसकी रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8 से 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता है।

आजाद कलौंजी

इस किस्म को उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक उगाया जाता है इस पौधे की लम्बाई सामान्य होती है. जिसका उत्पादन 10-12 क्विंटल तक पाया जाता है आजाद कलौंजी पौधे की रोपाई 140 – 150 दिन के बाद तैयार हो जाती है।

एन. एस.-32 ( N.S.-32 )

इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के होते है।कलोंजी की ये एक नई उन्नत किस्म है.इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 140 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं.जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 10 से 15 क्विंटल तक पाया जाता है.

कलौंजी की खेती की तैयारी केसे करे? ( How to prepare for Kalonji cultivation?)

कलौंजी की खेती के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से सफाई कर उसकी दो से तीन तिरछी जुताई कर देना चाहिए उसके बाद खेत में उचित मात्रा में पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला देना चाहिए. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत का पलेव कर दे. पलेव करने के बाद जब खेत की मिट्टी सूखने लगे तब उसकी फिर से रोटावेटर की सहायता से जुताई कर दे. इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है. खेत की जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी को समतल बना लें.

कलौंजी बीज रोपाई का तरीका और टाइम (Method and time of planting Kalonji seeds)

कलौंजी की बुवाई बीज के माध्यम से की जाती है. इसके लिए समतल बनाए गए खेत में उचित आकार वाली क्यारी तैयार कर लें. इन क्यारियों में इसके बीज की रोपाई की जाती है. इसके बीजों की रोपाई खेत में छिडकाव विधि से की जाती है. एक हेक्टेयर में इसकी रोपाई के लिए लगभग 7 किलो बीज की जरूरत होती है. इसके बीज को खेत में लगाने से पहले उसे उपचारित कर लेना चाहिए. बीज को उपचारित करने के लिए थिरम की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए.

कलौंजी की खेती रबी की फसलों के साथ ही जाती है. इस दौरान इसके बीजों की रोपाई का टाइम मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक का होता है. इस दौरान इसकी रोपाई कर देनी चाहिए. लेकिन अक्टूबर ले लास्ट तक भी इसकी बुवाई की जा सकती है.

कलौंजी पौधों की सिंचाई ( Irrigation of Kalonji Plants)

कलौंजी के पौधों को पानी की सामान्य जरूरत होती है. इसके बीजों को खेत में लगाने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए. उसके बाद बीजों के अंकुरित होने तक नमी बनाये रखने के लिए खेत की हल्की सिंचाई उचित टाइम पर कर देनी चाहिए. पौधे के विकास के दौरान 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए.

कलौंजी के पौधे को उर्वरक की मात्रा (Quantity of Fertilizer to Kalonji Plant)

कलौंजी के पौधे को अन्य फसलों की तरह उर्वरक की जरूरत होती है।  इसके लिए शुरुआत में खेत की जुताई के समय लगभग 10 से 12 वाहन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में जुताई के साथ पुरानी गोबर की खाद डालें।  इसके अलावा दो से तीन बोर एनपीके रासायनिक उर्वरक के रूप में।  राशि खेत में अंतिम जुताई के समय देनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

कलौंजी की खेती में निलाई निराई द्वारा खरपतवार नियंत्रण किया जाता है।  इसके लिए शुरुआत में बीज बोने के करीब 20 से 25 दिन बाद पौधे हल्के नीले रंग के होने चाहिए।  कलौंजी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की दो से तीन गुड़ाई करना पर्याप्त होता है।  पहली निराई के बाद बाकी की जोडाई 15 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

कलौंजी के पौधों में रोग बहुत कम देखने को मिलते हैं। लेकिन कुछ रोग ऐसे भी होते हैं जो इसके पौधों को नुकसान पहुंचाकर उपज को प्रभावित करते हैं। जिनकी समय पर देखभाल और उचित देखभाल करके उपज के नुकसान को रोका जा सकता है।

कटवा इल्ली

कटवा कृमि रोग पौधे के अंकुरित होने के बाद किसी भी अवस्था में हो सकता है।  इस रोग के लगने पर पौधा शीघ्र ही खराब हो जाता है।  क्योंकि इस रोग के कीट पौधे को जमीन की सतह के पास काटकर नष्ट कर देते हैं।  जब इस रोग का प्रकोप खेत में दिखने लगे तो पौधों की जड़ों पर उचित मात्रा में क्लोरपाइरीफॉस का छिड़काव करना चाहिए।

जड़ गलन

बरसात के मौसम में जलभराव के कारण पौधों पर जड़ सड़न रोग दिखाई देता है।  इस रोग का प्रकोप होने पर पौधा मुरझाने लगता है।  इसके बाद पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं।  इस रोग से बचाव के लिए पौधों में जलभराव न होने दें।  इसके अलावा खेत में प्रमाणित बीज ही उगाना चाहिए।

पौधों की कटाई

इसके पौधे बीज बोने के लगभग 130 से 140 दिनों के बाद पकने के लिए तैयार हो जाते हैं।  पौधों के पकने के बाद उन्हें जड़ सहित उखाड़ दिया जाता है।  पौधे को उखाड़ने के बाद, इसे एकत्र किया जाता है और कुछ दिनों के लिए तेज धूप में सूखने के लिए खेत में छोड़ दिया जाता है।  उसके बाद जब पौधा पूरी तरह से सूख जाए।  फिर अनाज को लकड़ी से पीटकर निकाल लिया जाता है।

पैदावार और लाभ

कलौंजी के पौधों की विभिन्न किस्में 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत उपज पर पाई जाती हैं।  जिसका बाजार भाव करीब 20 हजार प्रति क्विंटल है।  जिसके अनुसार किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से करीब दो लाख कमा लेता है।

English Summary : How to Cultivate Kalonji

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